शहर और गांव के नाम क्यों जुड़ा होता है ‘गंज’, जानें

भारत के हर शहर और गांव का अपना समृद्ध इतिहास है। पुराने समय में सभी गांव थे, लेकिन समय के पहिये ने रफ्तार पकड़ी और गांवों ने शहरों का रूप ले लिया। इस समय के साथ गांवों ने आधुनिकता का लिबास पहनकर अपने आपको नया रूप देने का काम किया, वहीं, जो शहर थे, उन्होंने उन्नति का हाथ थामा और आगे निकल पड़े। 

 

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समय के साथ-साथ इन गांव और शहरों में कई बदलाव हुआ, लेकिन एक चीज नहीं बदली, वह है इनका नाम। आज भी हम कई गांवों और शहरों को उनके पुराने नामों से ही जानते आ रहे हैं। इन्हीं में शामिल है कुछ ऐसे शहरों और गांवों का नाम, जिनके नाम में आपने ‘गंज’ लिखा देखा होगा।

जैसे, किशनगंज, रामगंज, दरियागंज, मल्कागंज, असरगंज और कायमगंज आदि। क्या आपको पता है कि आखिर क्यों इनके नाम में गंज लिखा जाता था। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे। 

 

किस भाषा का शब्द है गंज

गंज शब्द के वैसे तो अनेकार्थक शब्द हैं। हालांकि, इस शब्द की उत्पत्ति पुरानी फारसी भाषा मेदियन से मानी जाती है। उस समय में यह खजाने को रखने के लिए प्रयोग हुआ करता था।

हालांकि, बाद में संस्कृति और फारसी में यह गायों को रखने के लिए प्रयुक्त किया गया। संस्कृत भाषा में यह शब्द एक हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। वहीं, कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह शब्द संस्कृति के गज्ज के तत्सम के रूप में लिया गया है।

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पुराने समय में शोर वाले स्थान के लिए भी होता था इस्तेमाल

पुराने समय में इस शब्द का इस्तेमाल शोर वाले स्थान के लिए भी होता था। उदाहरण के तौर पर बर्तन रखने का स्थान और गोष्ठी के लिए भी इसका इस्तेमाल होता था। गोष्ठी शब्द का इस्तेमाल गौशाला के लिए किया जाता था। 

 

बाजार और मंडी के लिए किया गया उपयोग

समय के साथ-साथ इस शब्द के प्रयोग में बदलाव हुआ। इस दौरान इस शब्द का इस्तेमाल मंडी और बाजार वाले स्थान के लिए किया जाने लगा। पुराने समय में जिन जगहों पर बाजार लगा करते थे, उस स्थान को गंज कहा जाने लगा।

उदाहरण के तौर पर दरियागंज का उदाहरण देखें, तो पहले दरिया के किनारे बाजार लगा करता था। ऐसे में इसे दरियागंज कहा जाने लगा। दिल्ली के सदर बाजार इलाके में आज भी डिप्टीगंज है, जहां बर्तनों का बाजार लगा करता है। 

 

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Source: vcmp.edu.vn

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