कैसे मिला था देश को ‘INDIA’ नाम, जानिए क्या हैं नाम बदलने की संवैधानिक प्रक्रिया

भारत के सभी लोग अभी तक देश को ‘भारत’ और ‘इंडिया’ दोनों नामों से बुलाते है लेकिन हाल के समय में देश में एक नई बहस शुरू हो गयी है. क्या अब देश का नाम सिर्फ ‘भारत’ ही हो जायेगा, क्या ‘इंडिया’ शब्द को हमेशा के लिए हटा दिया जायेगा.   

मीडिया में चर्चा है कि मोदी सरकार 18 से 22 सितंबर तक चलने वाले विशेष सत्र में संविधान से ‘इंडिया’ शब्द हटाने का प्रस्ताव ला सकती है.   

‘INDIA’ या ‘भारत’ बहस कैसे शुरू हुई?

वैसे तो देश के नाम को ‘इंडिया’ से ‘भारत’ करने की मांग पहले भी उठाई जा चुकी है. हाल ही में यह चर्चा का विषय तब बन गया जब G-20 समिट के लिए विभिन्न राष्ट्र प्रमुखों को राष्ट्रपति की ओर से जो न्योता भेजा गया है, उसमें ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा है. तब से यह चर्चा का विषय बन गया है.  

पहले भी उठ चुकी है मांग:

देश के नाम को बदलने का विषय इससे पहले भी चर्चा में आ चुका है. नाम बदलने के प्रयास पहले भी किये जा चुके है. साल 2015 में गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने एक प्राइवेट बिल पेश करके ‘इंडिया दैट इज भारत’ की जगह ‘इंडिया दैट इज हिंदुस्तान’ करने की मांग की थी.       

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इससे पहले 2012 में कांग्रेस के सांसद शांताराम नाइक ने भी नाम बदलने के लिए प्राइवेट बिल पेश किया था. साल 2016 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.

इंडिया या भारत?

देश के संविधान में देश के दो नामों का उल्लेख किया गया है. पहला- भारत और दूसरा- इंडिया. भारतीय संविधान में लिखा है , ‘इंडिया दैट इज भारत’ (India that is Bharat). इसका अर्थ यह हुआ कि देश को दोनों में से किसी भी नाम से संबोधित किया जा सकता है. हम लोग ‘भारत सरकार’ या ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया’ दोनों कह सकते है.      

देश को दो नाम कैसे मिला?

भारत के संविधान के निर्माण के समय एक संविधान सभा का गठन किया गया था. उस समय भी देश के नाम को लेकर सदस्यों के बीच तीखी बहस हुई थी. संविधान सभा के सदस्य एचवी कामथ और सेठ गोविंद दास सहित कई सदस्यों ने अंबेडकर समिति द्वारा देश के दो नाम (इंडिया और भारत) सुझाये जाने पर आपत्ति जताई थी.        

इस सम्बन्ध में कामथ ने संविधान के आर्टिकल 01 में संशोधन का प्रस्ताव रखा था. उन्होंने ‘इंडिया दैट इज भारत’ पर आपत्ति जताई थी. साथ ही उन्होंने देश के लिए ‘हिंदुस्तान, भारतभूमि और भारतवर्ष’ जैसे नाम सुझाए थे. 

देश के दो नाम को लेकर, श्रीराम सहाय, बीएम गुप्ता, हर गोविंद पंत और कमलापति त्रिपाठी जैसे सदस्यों ने भी विरोध किया था. ये सदस्य भी देश के एक नाम के पक्ष में ही थे. इस विषय को लेकर कमलापति त्रिपाठी और डॉ. बीआर अंबेडकर  के बीच बहस भी हुई थी.      

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नाम बदलने की क्या है संवैधानिक प्रक्रिया?

 भारतीय संविधान के अनुच्छेद-1 में लिखा है- ‘इंडिया, दैट इज भारत, जो राज्यों का संघ होगा (India, that is Bharat, shall be a Union of States). संविधान का अनुच्छेद-1 ‘भारत’ और ‘इंडिया’ दोनों नामों को मान्यता देता है. ऐसे में यदि देश के नाम को बदलने की प्रक्रिया में संविधान के अनुच्छेद-1 में संशोधन करना होगा. इसके लिए सरकार को संसद में बिल लेकर आना होगा.  

दो-तिहाई बहुमत की होगी आवश्यकता:

यदि केंद्र सरकार विशेष सत्र में नाम बदलने का प्रस्ताव लाती है तो सरकार को इस बिल को पास कराने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्कता होगी.    

अनुच्छेद-368 क्या कहता है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद-368 संविधान में संशोधन की अनुमति देता है. इसके तहत कुछ संशोधन साधारण बहुमत (50%) के आधार पर कर दिए जाते है. लेकिन कुछ संशोधनों के लिए कम से कम दो-तिहाई संसद सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है. अनुच्छेद 368(2) के अनुसार संसद के किसी भी सदन में संशोधन प्रस्ताव लाया जा सकता है.  

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Source: vcmp.edu.vn

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